सवारी गाड़ी और लोकल सेवा शुरू करते ही किराये में बढ़ोतरी करने पर रेलवे निशाने पर है। कम दूरी की यात्रा में किराया 300 गुना तक बढ़ गया है। रेलवे ने सफाई दी है कि ट्रेनों में भीड़ को नियंत्रित करने और कोविड-19 के प्रसार को थामने के लिए ऐसा किया गया है। मगर आलोचकों का तर्क है कि गरीबों की सवारी होने के कारण रेल किराये में इस बढ़ोतरी की मार सबसे ज्यादा निचले तबके पर ही पड़ेगी, जिनकी माली हालत पहले से ही खराब है। ये तमाम तर्क बेजा जान पड़ते हैं। कोरोना के घटते-बढ़ते संक्रमण को देखते हुए यह जरूरी है कि ट्रेनों की भीड़ नियंत्रित रहे, और फिर यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यात्री ट्रेन से रेलवे को हर वर्ष करीब 45 हजार करोड़ रुपये का घाटा होता है। कोविड संक्रमण काल में यह नुकसान खासा बढ़ गया है। लिहाजा रेलवे ने दो सूत्रीय योजना पर...
more... काम किया है। पहला, कोरोना संक्रमण को देखते हुए लोग फिलहाल कम यात्रा करें और दूसरा, रेलवे का बजट थोड़ा संतुलित हो जाए, क्योंकि वर्तमान किराया बढ़ोतरी से पांच हजार करोड़ रुपये का ही फर्क पड़ने का अनुमान है। देखा जाए, तो सवाल किराये का नहीं, रेलवे की क्षमता का है।आज भी परिवहन के अन्य माध्यमों की तुलना में रेल सेवा काफी सस्ती है। आम आदमी की अब भी यही सवारी है। दिक्कत यह है कि आजादी के बाद के दशकों में इसकी क्षमता बढ़ाने पर कम ध्यान दिया गया। चूंकि अब क्षमता बढ़ाने की योजना पर तेजी से काम हो रहा है, जिसके लिए निवेश की दरकार है। सात-आठ साल पहले तक सालाना 20 हजार करोड़ रुपये रेलवे के ढांचागत विकास पर खर्च किए जाते थे, जबकि इस कोविड काल में भी 1.38 लाख करोड़ रुपये इस मद में आवंटित किया गया है। सरकार का कहना है, 2030 तक इसे 50 लाख करोड़ रुपये कर दिया जाएगा, ताकि हर वक्त टिकट की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। इन रुपयों को क्षमता बढ़ाने पर खर्च किया जा रहा है। दोनों फ्रेट कॉरिडोर लगभग काम करने लगे हैं। इससे मेन लाइन पर चलने वाली लगभग 100-150 मालगाड़ियां उस कॉरिडोर पर चलने लगेंगी, जिससे इतनी यात्री गाड़ियों की क्षमता में विस्तार हो सकेगा। 12 हजार होस पावर का लोकोमोटिव आ गया है। इंजन की क्षमता बढ़ाई गई है। किराया बढ़ोतरी को इसी का हिस्सा मानना चाहिए। अभी बस के मुकाबले ट्रेन का किराया बहुत कम है। सामान्य दिनों में बस के मुकाबले इसका किराया एक तिहाई ही होता था। आज भी यदि डीजल के दाम में वृद्धि की वजह से निजी बस चालक अपना किराया बढ़ाते हैं, तो उसके मुकाबले ट्रेन का बढ़ा किराया कम ही जान पड़ता है। हां, क्षमता विस्तार एक मसला है। कोविड की स्थिति नियंत्रित हुई, तो और गाड़ियां चलेंगंी। 12 हजार गाड़ियां हर दिन चलती हैं, लेकिन अभी इतनी क्षमता से चलाने की जरूरत नहीं है। ध्यान रहे, 2030 तक रेलवे को पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर चलाने की दिशा में काम हो रहा है। इसलिए ट्रेन से चलने पर आप देश-दुनिया का भला ही करेंगे। पर्यावरण का भी भला होगा। इसकी तुलना यदि डीजल से चलने वाली गाड़ियों से करें, तो पेट्रो उत्पादों के दाम बढ़ने से वहां भी किराये में बढ़ोतरी हुई है।जब तक सभी लोगों को कोविड का टीका नहीं लग जाता, जब तक कोरोना का संकट दूर नहीं हो जाता, तब तक स्पेशल ट्रेन चलाई जानी चाहिए। स्पेशल ट्रेन का मतलब यह है कि वह रेगुलर नहीं होती है, लेकिन अभी स्पेशल ट्रेन रेगुलर ट्रेन की रूट और ठहराव के साथ जा रही है। रेलवे के पास उसमें कुछ तब्दीली करने का अधिकार है। कोविड के कारण स्टॉपेज बढ़ाना या घटाना पड़ सकता है। रेगुलर ट्रेन में जो प्रतिबद्धता है, उसमें तब्दली काफी मुश्किल होती है। विशेष परिस्थितियों में ही स्पेशल ट्रेन चलती है और नियत समय के लिए ही उनका टाइम टेबल जारी होता है। नेशनल रेल प्लान 2030 के तहत रेलवे में बहुत बदलाव होने हैं। रेलवे इस कोशिश में है कि रेल विभाग की ओर से कोई कार्बन उत्सर्जन न हो। ट्रेन में सुविधाओं का विस्तार करना है। गति बढ़ानी है। मालगाड़ी की गति 25 से बढ़कर 50 किलोमीटर प्रति घंटा हो जाएगी। यात्री गाड़ी की गति अभी उच्चतम 140 किलोमीटर है, उसे बढ़ाकर 225 तक करना है। तभी यात्रियों का रेल के प्रति आकर्षण बढ़ेगा और किराया बढ़ोतरी नहीं खलेगी।(ये लेखक के अपने विचार हैं)