एक बार हमें करनी पड़ी रेल की यात्रा
देख सवारियों की मात्रा
पसीने लगे छूटने
हम घर की तरफ़ लगे फूटने
.
इतने...
more... में एक कुली आया
और हमसे फ़रमाया
साहब अंदर जाना है?
हमने कहा हां भाई जाना है
उसने कहा अंदर तो पंहुचा दूंगा
पर रुपये पूरे पचास लूंगा
हमने कहा समान नहीं केवल हम हैं
तो उसने कहा क्या आप किसी सामान से कम हैं ?
.
जैसे तैसे डिब्बे के अंदर पहुचें
यहां का दृश्य तो ओर भी घमासान था
पूरा का पूरा डिब्बा अपने आप में एक हिंदुस्तान था
कोई सीट पर बैठा था, कोई खड़ा था
जिसे खड़े होने की भी जगह नही मिली वो सीट के नीचे पड़ा था
.
इतने में एक बोरा उछालकर आया ओर गंजे के सर से टकराया
गंजा चिल्लाया यह किसका बोरा है ?
बाजू वाला बोला इसमें तो बारह साल का छोरा है
.
तभी कुछ आवाज़ हुई और
इतने मैं एक बोला चली चली
दूसरा बोला या अली
हमने कहा काहे की अली काहे की बलि
ट्रेन तो बगल वाली चली
....
.
.
.
This poem was written by Great Hindi poet, humorist, and satirist Mr. Sushil Kumar Chaddha, better known as Hullad Moradabadi.
My salute to him.
thanks